अवध में राम आये हैं – श्री वाल्मीकि रामायण (सर्ग 127 – युद्ध कांड)
अयोध्या परम धाम में नव्य, भव्य एवं दिव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की मृगशीर्ष नक्षत्र में सोमवार पौष माह के शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि तदनुसार 22 जनवरी 2024 के कार्यक्रम से जुड़ने के लिए अक्षत वितरण द्वारा जन जागरण अभियान तथा सभी हिंदुओं को इस प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान में स्वस्थान से सम्मिलित होने और अवध में भगवान श्रीराम की वापसी पर 22 जनवरी को दीपावली का उत्सव मनाने के लिए आमंत्रित करने के अभियान में घर घर में अपेक्षा से कहीं अधिक उत्साह, श्रद्धा एवं श्रीराम के प्रति गहरी आस्था देखने को मिली। जिस प्रकार श्रद्धापूर्वक सपरिवार पति-पत्नी और बालकों ने अक्षत को स्वीकार किया, वह भाव विह्वल करने वाला था। श्रीरामचरितमानस के ज्ञान का भंडार भी जन जन में देखने को मिला और हर घर में मंदिर होने से अपार प्रसन्नता मिली। भगवान श्रीराम और जनमानस के श्रद्धेय और पूज्य महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में वर्णित भगवान श्रीराम की लंकापति रावण के वध तथा विजय के पश्चात अयोध्या वापसी का वर्णन भी अलौकिक एवं दिव्य है और उसका साक्षात् आंखों देखा प्रकटीकरण है।
महर्षि वाल्मीकि सतयुग त्रेता और द्वापर तीनों के दृष्टा थे भगवान श्रीराम जब उनसे मिलने उनके आश्रम पर गए थे तब उन्होंने कहा-
तुम त्रिकालदर्शी मुनि नाथा। विश्व बदर जिमि तुम्हरे हाथा।।
महर्षि वाल्मीकि ने ब्रह्मा जी की प्रेरणा और आशीर्वाद से राम के चरित्र की रामायण के रूप में संस्कृत में रचना की वह का संसार का प्रथम महाकाव्य बना।
“न ते वाग्नृता काव्ये काचिदत्र भविष्यति।
कुरु राम कथां पुण्यां श्लोकबद्धा मनोरमाम्।”
भगवान श्रीराम के भ्राता भरत जी, हनुमान जी से भगवान श्रीराम के आगमन का समाचार सुनने के पश्चात, शत्रुघ्न को बुलाते हैं और उन्हें अयोध्या शहर में श्रीराम के स्वागत के लिए उचित व्यवस्था करने का आदेश देते हैं। भरत जी अन्य सभी जन के साथ भगवान श्रीराम को लेने के लिए नंदीग्राम के लिए प्रस्थान करते हैं। पुष्पक विमान नंदीग्राम में उतरता है। भरत जी भगवान श्रीराम और अन्य लोगों को गले लगाकर और आल्हदित् होकर उनका स्वागत करते हैं। भगवान श्रीराम भी अपनी सभी माताओं को नमस्कार करते हैं, जो उन्हें लेने आती हैं। फिर, भरत भगवान श्रीराम की चरण पादुकाएँ लाते हैं और उन्हें भगवान श्रीराम के चरणों के नीचे रख देते हैं। भगवान श्रीराम ने पुष्पक विमान को धन के स्वामी कुबेर के पास लौटने का आदेश दिया, जिसका वह मूल रूप से स्वामित्व था।
श्रुत्वा तु परमानन्दं भरतः सत्यविक्रमः।
हृष्टमाज्ञापयामास शत्रुघ्नं परवीरहा।। ६-१२७-१
हनुमान जी से अत्यंत प्रसन्नता का समाचार सुनकर, वास्तव में वीर शासक और शत्रुओं का संहार करने वाले भरत ने शत्रुघ्न को (इस प्रकार) आज्ञा दी, जो भी इस समाचार से प्रसन्न हुए।
दैवतानि च सर्वाणि चैत्यानि नगरस्य च।
सुगन्धमाल्यैर्वादित्रैरर्चन्तु शुचयो नराः।। ६-१२७-२
आज्ञा: अच्छे आचरण वाले मनुष्य अपने कुल-देवताओं, नगर के पवित्र स्थानों की मधुर-सुगंधित पुष्पों तथा संगीत वाद्ययंत्रों के साथ पूजा करें।
सूताः स्तुतिपुराणज्ञाह् सर्वे वैतालिकास्तथा।
सर्वे वादित्रकुशला गणिकाश्चैव संघशः ।। ६-१२७-३
राजदारास्तथामात्याः सैन्याः सेनागणाङ्गनाः।
ब्राह्मणाश्च सराजन्याः श्रेणिमुख्यास्तथा गणाः।। ६-१२७-४
अभिनिर्यान्तु रामस्य द्रष्टुं शशिनिभं मुखम्।
आज्ञा – स्तुति और पुराण (जिसमें प्राचीन किंवदंतियाँ, ब्रह्मांड विज्ञान आदि शामिल हैं) गायन में पारंगत भाटों को, साथ ही सभी आनंदित करने वाले बजाने खेलों, संगीत वाद्ययंत्रों के उपयोग में कुशल सभी लोगों को, सभी एक साथ एकत्र होने वाली गणिकाओं को, रानी-माताओं, मंत्रियों, सेना-पुरुषों को शामिल किया जाए। उनकी पत्नियाँ, ब्राह्मण, क्षत्रियों के साथ, व्यापारियों और श्रमिकों के संघों के नेता, और उनके सदस्य भी, भगवान श्रीराम के चंद्रमा जैसे स्वरूप को देखने के लिए बाहर चलें।
भरतस्य वचः श्रुत्वा शत्रुघ्नः परवीरहा।। ६-१२७-५
विष्टीरनेकसाहस्रीश्चोदयामास भागशः।
समीकुरुत निम्नानि विषमाणि समानि च ।। ६-१२७-६
भरत के वचन सुनकर वीर शत्रुओं का संहार करने वाले शत्रुघ्न ने श्रमिकों को हजारों की संख्या में बुलाकर टोलियों में बाँटकर आदेश दिया। मार्गों में गड्ढों को समतल कर दिया जाए। उबड़-खाबड़ और समतल स्थानों को समतल कर दिया जाए।
स्थानानि च निरस्यन्तां नन्दिग्रामादितः परम्।
सिञ्चन्तु पृथिवीं कृत्स्नां हिमशीतेन वारिणा।। ६-१२७-७
नंदीग्राम से अयोध्या तक का मार्ग साफ कर दिय जाये तथा शीतल जल छिड़क दिया जाए।
ततो अभ्यवकिरंस्त्वन्ये लाजैः पुष्पैश्च सर्वतः।
समुच्छ्रितपताकास्तु रथ्याः पुरवरोत्तमे।। ६-१२७-८
तत्पश्चात अन्य लोग रास्ते में सब ओर लावा तथा पुष्प बिखेर दें। इस श्रेष्ठ नगरी के मार्गों के अगल बगल में ऊंची पताकाएं फहरा दी जायें। आज्ञा –
शोभयन्तु च वेश्मानि सूर्यस्योदयनं प्रति।
स्रग्दाममुक्तपुष्पैश्च सुगन्धैः पञ्चवर्णकैः।। ६-१२७-९
कल सूर्योदय तक लोग नगर के सब भवनों को सुनहरी पुष्पमालाओं, घनीभूत फूलों के मोटे गुच्छों, सूत के बंधन से रहित कमल आदि के पुष्पों तथा पंचरंगए अलंकारों से सजा दें।
राजमार्गमसम्बाधं किरन्तु शतशो नराः।
ततस्तच्छासनं श्रुत्वा शत्रुघ्नस्य मुदान्विताः।। ६-१२७-१०
“राजमार्ग पर अधिक भीड़ न हो, इसकी व्यवस्था के लिए सैंकड़ों मनुष्य सब ओर लग जायें।” शत्रुघ्न का वह आदेश सुनकर सब लोग बड़ी प्रसन्नता के साथ उसके पालन में लग गये।